सुबह होते ही मेरे दोस्त दुविधा प्रसाद जी आ टपके...टपके इस लिए बोल रहा हू की वो कभी भी कहीं भी बुलावे परआते-जाते नही...बल्कि अचानक टपक पड़ते है...पुरे महौले की चिंता....समाज की चिंता...धर्म की चिंता...देश कीचिंता...विदेश की चिंता...चिंता ही चिंता है उनके पास में...चिंता इतनी की उनका पुरा जीवन ही अब चिंता बन गयाहै...पास की लड़की ने प्रेम - विवाह किया चिंतित हुए दुविधा प्रसाद जी...मुंबई में हमला हुआ तो परेशान दुविधाप्रसाद जी .... बीजेपी की हार हुई दुखी हुए दुविधा प्रसाद जी...दाल-चीनी के भाव बढे रातभर सोये नही दुविधा प्रसादजी...देश में बिजली का संकट आया तो पसीने-पसीने हुए दुविधा प्रसाद जी...आस्ट्रेलिया में हमले हुए भारत में कम्कम्पाये दुविधा प्रसाद जी....सरकार ने सम्लैगिता पर बयान दिया धर्म संकट में पड़े दुविधा प्रसादजी...haryana की खाप पंचायत ने फैसला दिया सहमे गुजरात में बैट्ठे दुविधा प्रसाद जी.... ये दुविधा प्रसाद अकेले मेरे ही दोस्त नही है...हर किसी के पास ऐसे एक-आध दोस्त होते है....जिनकी पुरी जिन्दगी ही चिंता में बीत जाती है...चिंता भी कैसी ...... जिसका उसके जीवन से कोई लेना-देना नही होता और न ही उसके पास उन चिन्ताओ का कोई हल होता है...एक दिन वो इसी चिंता में दुनिया को अलविदा कह जाते है... बिना किसी अर्थ के पशु का जीवन जी कर चले जाते है...जीवन से दूर....जीवन जीने वाले हर आदमी में दुविधा प्रसाद चौकडी मर के बैटते रहते है.....अब आप में दुविधा प्रसाद बैट्ठे है या नही- ये देखना आपका काम है.....
Friday, 14 August 2009
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