
उगते सूरज को सलाम करने वालो के समाज में २०१० का स्वागत.....
२०१० के आने से पहले जिस तरह से लोगो में इसके स्वागत को लेकर उत्साह देखने को मिला ....वो काफी हद तक हमारी अक्तार्फी सोच को ही उजागर करता है.....
हमारे राजनेताओ की जीवन शैली का असर अब आम जन पर दिखने लगा है....हमारे लोकतंत्र में सदा से आने वाले का स्वागत किया जाता है और जाने वाले से किनारा.....कुछ ऐसा ही नए साल का जश्न मनाने में लगे लोगो ने किया....एक साल तक जो उनके सुख-दुःख का साथी रहा उसे एक पल में ही भुला दिया....पुरे एक साल तक जिसने दुनिया के रंगों को हमारे सामने पल-पल प्रस्तुत किया उसे एक ही पल में भुला देना, हमारी स्वार्थ प्रवृति का नमूना नहीं तो और क्या है?
पिछले बीस सालो से हमारे समाज में आ रही यही परवर्ती हमारे नैतिक मूल्यों के विनाश का कारन बनती जा रही है....हम लोगो ने चकाचौंध से भरी पाश्चात्य जीवन शैली में खोकर स्वयं को सस्ती लोकापिर्यता की वस्तुभर बना लिया है.....अब न हमारे पास संस्कार बचे है और न ही संस्कार देने वाली माताएं अब हमारे समाज में बची है....ऐसे में अब खोखली हो चुकी जीवनशैली में हमारे समाज में मानवता कब तक जीवित रहेगी ये देखने वाली बात है....
२००९ का आभारी है की उसने हमारे समाज से मानवता का पुर्न्ना विनाश नहीं होने दियता दिया....
और २०१० से उम्मीद है की वो भी इस क्रम को कायम रखेगा.....
No comments:
Post a Comment