Thursday, 12 November 2009

सूरज अस्त हो रहा है






सूरज अस्त हो रहा है हमारे समाज का


सूरज अस्त हो रहा है हमारे संस्कारो का


सूरज अस्त हो रहा है हमारे आने वाले कल का


kon है इसका dosi


शायद हम और तुम


हमने नाम और पैसे की भूख me


bachche को nokar के hawale कर


उसकी ma को bhej दिया noukari करने


vo सुबह से sham तक घर से bahar रहती है


आते समय kurkare la कर bete को दे


karwa देती उसे ahasas की ma उसे करती है प्यार


ये kurkure का प्यार ही कर रहा है


आने वाले कल का surya अस्त


ये noukari वाली ma ही कर रही है


आने वाले कल को संस्कार vahina


nokar के hatho pala हुआ हमारा कल


kesa होगा.............?


kalpana करने से की kamp jati है ruh


sochata hu chand paiso के लिए


ma kese dur हो jati है अपने bachche से........


सच......


सूरज अस्त हो रहा है हमारे कल का


....................................................................






Sunday, 4 October 2009

मेरी खुशी ...... मेरे साथ .......


वक्त ने करीब तीन साल पहले मजबूर कर दिया था एक अनजान परिवार को अपने परिवार का हिस्सा बनाने के लिए....तीन सालो में बहुत कुछ मुझे उनसे मिला और बहुत कुछ शायद उन्हें भी मुझ से मिला हो ...पर नही मिला तो वो था मेरा और उस परिवार का स्वभाव .... विचारो में एकरूपता जो इन तीन सालो में कभी भी नही आ पाई ...उन्हें लगता था की मैं हिटलर हू...तानाशाह हू...और मुझे लगता था की वे चापलुश और स्वार्थी लोग है....विचारो की इन्ही गड़बड़ झाले में हम तीन सालो तक साथ रहे.....दोनों ही तरफ से अविश्वाश के साथ ..... तीन साल बाद अचानक विस्फोट हुआ..... सब कुछ अलग हो गया... अब वो और मैं या फिर यूँ कहे की हम दोनों परिवार नदी के दो किनारे बन गए है....जो कभी एक नही हो सकते....इस दूरी का मुझे कोई गिला या शिकवा नही है....न ही मुझे रिश्ते की इस टूटन पर कई अफसोस है.....पता नही क्यों ऐसा है....? वरना रिश्ते के टूटने पर गम होना चाहिए.....दर्द होना चाहिए.....पर .... मेरे साथ ऐसा कुछ भी नही है.....अब लगता है की उनके दूर होने पर भी खुशी का मेरे पास यु ही रहना साफ करता है की हमारे बीच में शायद कोई रिश्ता था ही नही.... हम मात्र वक्त के मिलाने पर मिले हुए अनजान लोग थे....जो वक्त आने पर अलग-अलग हो गए........ या फिर हो सकता है मुझे रिश्तो की कदर करनी नही आती....पर जो भी हो मैं अपने-आप से खुश हूँ .... और यही कारण है की मेरी खुशिया हरदम मेरे साथ रहती है......
अब आप क्या सोचते है?
हमारे रिश्ते बने थे या नही?
मैं खुश हूँ ....इसका कारण ये तो नही की मैं इस पहले रिश्ते को वजन मान कर ही कुलीपना कर रहा था?
या फिर मुझे वाकई में रिस्तो की कदर नही है?
............आप छाए जो भी सोचे ....पर मुझे लगता है की मैं खुश हूँ -इसलिए मैं कभी ग़लत नही था......

Friday, 14 August 2009

दुविधा प्रसाद जी......


सुबह होते ही मेरे दोस्त दुविधा प्रसाद जी आ टपके...टपके इस लिए बोल रहा हू की वो कभी भी कहीं भी बुलावे परआते-जाते नही...बल्कि अचानक टपक पड़ते है...पुरे महौले की चिंता....समाज की चिंता...धर्म की चिंता...देश कीचिंता...विदेश की चिंता...चिंता ही चिंता है उनके पास में...चिंता इतनी की उनका पुरा जीवन ही अब चिंता बन गयाहै...पास की लड़की ने प्रेम - विवाह किया चिंतित हुए दुविधा प्रसाद जी...मुंबई में हमला हुआ तो परेशान दुविधाप्रसाद जी .... बीजेपी की हार हुई दुखी हुए दुविधा प्रसाद जी...दाल-चीनी के भाव बढे रातभर सोये नही दुविधा प्रसादजी...देश में बिजली का संकट आया तो पसीने-पसीने हुए दुविधा प्रसाद जी...आस्ट्रेलिया में हमले हुए भारत में कम्कम्पाये दुविधा प्रसाद जी....सरकार ने सम्लैगिता पर बयान दिया धर्म संकट में पड़े दुविधा प्रसादजी...haryana की खाप पंचायत ने फैसला दिया सहमे गुजरात में बैट्ठे दुविधा प्रसाद जी.... ये दुविधा प्रसाद अकेले मेरे ही दोस्त नही है...हर किसी के पास ऐसे एक-आध दोस्त होते है....जिनकी पुरी जिन्दगी ही चिंता में बीत जाती है...चिंता भी कैसी ...... जिसका उसके जीवन से कोई लेना-देना नही होता और ही उसके पास उन चिन्ताओ का कोई हल होता है...एक दिन वो इसी चिंता में दुनिया को अलविदा कह जाते है... बिना किसी अर्थ के पशु का जीवन जी कर चले जाते है...जीवन से दूर....जीवन जीने वाले हर आदमी में दुविधा प्रसाद चौकडी मर के बैटते रहते है.....अब आप में दुविधा प्रसाद बैट्ठे है या नही- ये देखना आपका काम है.....



Sunday, 26 July 2009

जिन्दगी




एक मुस्कराती-सी तस्वीर है जिन्दगी


कभी सवाल तो कभी जवाब है जिन्दगी


किसी स्कूल के बच्चे से पूछो तो


गुणा और भाग है जिन्दगी .....


किसी के लिए कांटे तो किसी के लिए फूल




किसी के लिए शिकायत तो किसी के लिए शकुन


कोई नही हरदम खुश यहाँ पर


पति-पत्नी की रोज की लढाई-प्यार है जिन्दगी ....

Tuesday, 20 January 2009

इज्जत...


अपनी-अपनी सोच होती है। अपने-अपने तर्क होते है। परन्तु सोच और तर्क ... उस समय धरे के धरे रह जाते है जब कोई निरपराध को सजा मिल जाती है। मुझे आज तक एक घटना रात को अक्सर जगा देती है...विचलित कर देती है। मेरे साथ एक लड़की पढ़ती थी... अनामिका बोलते थे सभी उसे...हवा का झोंका थी...तैरती रहती थी सदा मधुर संगीत की तरह.... । हमसे दो कैलास नीचे एक लड़का .... उसे दिल ही दिल चाहने लगा.... एक-दो बार अनामिका से बात की...उससे दोस्ती की बात कही...अनामिका ने मना कर दिया..फिर चार-पाँच बार कोशिश की....हर बार नाकाम रहा..एक दिन उसने अनामिका को कैलास के बहार रोक लिया ...और अपने हाथ की कलाई कट ली... । मैंने सब कुछ देखा और पुरी घटना को कलम से विस्तृत रूप दे समाचार बना छाप दिया....उस दिन के बाद अनामिका दिखाई नही दी... धीरे-धीरे समय बीत गया...पेपर आ गए...अनामिका अपने पिता जी के साथ आई...चुपचाप...खामोश...बिल्कुल उदास.... । हवा में तैरने वाली अनामिका के पास आकर अब हवा भी खामोशी की चादर में लिपट रही थी... । पेपर ख़त्म होने पर अनामिका मेरे पास आई और बोली..... आख़िर मेरा कसूर क्या था...? आपकी ख़बर हुई ..... लोगो ने दिल लगाकर पढ़ी और किसी की जिन्दगी दाव पर लग गई... । अनामिका के ये शब्द आज भी मुझे रात को जगा देते है... । और सोचने को मजबूर कर देते है की .... आख़िर छेड़छाड़ की ख़बर का असर पीडिता पर ही क्यों पड़ता है...? शायद ....... हमारे सभ्य समाज में आज भी नारी मात्र भोग की ही वास्तु मणि जाती है....और इज्जत की ठेकेदारी का सारा बोझ उस पर ही होतो है...... । पुरुषः तो कुछ भी करने के लिए आजाद है-गली के कुत्ते की तरह ।

Monday, 19 January 2009

उलझन....


कई बार ऐसी उलझन में मन फंस जाता है की हंसते-खेलते रिश्तो में भी दरार आ जाती है...उस वक्त जीवन के सारे अर्थ अनर्थ में तब्दील हो जाते है और ये रंगीन दुनिया फिर काँटों की सेज लगने लगती है.... ।

मेरे संपर्क में एक ऐसा ही खुशहाल दम्पति था....गरीबी के आँचल में भी दोनों खुश। दोनों के पास दुनिया को अपनी नजर से देखने का एक प्यारा सा सपना भी था....वो थी उनकी ३-४ साल की मासूम और प्यारी सी बेटी। पर गरीब के पास खुशियों का बसेरा कम ही होता है...जालिम समाज गरीब को खुश देख ही नही सकता... ।
समाज के कुछ दरिंदो की नजर इस परिवार पर पड़ी....फिर शुरू हुई एक साजिश.... । इस साजिश का शिकार बना वह गरीब परिवार... । दरिंदो ने पहले दम्पति में से पुरूष को अपना शिकार बनाया... । उसे अपना दोस्त बनाया । उसे शराब पीनी सिखाई । उसे पराई नारी के पास ले जाया गया । फिर उनकी नजर गई उसकी बीबी पर.... । उसे मीठी -मीठी बातो में फुसलाया गया...हँसी-मजाक से सफर शुरू किया... । फ़िर उसे दोस्ती की ऑफर की । वो भयभीत हो गई.. ऐसे में उसने एक सहेली को पुरी बात बताई... । उसकी सहेली ने भी उसे ग़लत दिशा देते हुए दोस्ती करने की सलाह दे दी... बस यही से शुरू हो गया उलझन का रास्ता... । दरिंदा उसे अब अपनी हवाश का शिकार बनाना चाहता था.... । कभी शादी का झांसा देकर .... तो कभी बड़े-बड़े सपने दिखा कर.... । मिया-बीबी में रोजाना तकरार होने लगी... । पति पत्नी पर शक करने लगा.... । परन्तु पत्नी यकीं दिलाती रही....पर कोई फायदा नही....बिना कुछ किए ही वो गुन्हा के घेरे में थी....केवल दोस्ती करने और बात करने की सजा उसे चरित्रहीन के रूप में मिल रही थी....सभी समाज भी मजा ले रहा था.... । बिना कुछ जाने हर कोई उसे ग़लत कह रहा था..... । इसे वो सहन नही कर सकी ....और दो दिन पहले उसने फंसी पर लटक कर जान देने की कोशिश की...उसे बचा तो लिया गया.....पर रिश्तो में आई उलझन यु की त्यों बनी रही..... । शहर को छोड़ दम्पति फ़िर अपने गाँव चला गया ..... उलझन को कम करने के लिए...... ।
और मैं सोचता रहा पुरी रात की आख़िर कसूर किसका था... ??
दरिन्दे का...?
सहेली का.....?
पति का........?
या फिर पत्नी का.....?
फिर लगा इन में से किसी का भी नही..... । कसूर था सोच का...समाज का....najariye का ...
और.......इसकी सजा मिली एक खुशहाल परिवार को.......... ।

Sunday, 18 January 2009

रिश्ते....


दोस्ती और रिश्तो दो ऐसी चीजे है जिनके बिना जिन्दगी काफी निराश हो जाती है। रंगहीन हो जाती है। ये बात सभी जानते है। इसी लिए दोस्ती और रिश्तो को बचाए रखने के लिए सब कुछ दाव पर लगा भी देते है।

पर .... कुछ लोग मेरी तरह भी होते है... जिनको इन दोनों बेशकीमती हीरे की भी कदर नही होती... बस अपने इगो को पुरा करने में दो अनमोल हीरो को टुकरा देते है। अभी इस हफ्ते की शुरुआत में ही मेने एक दोस्त ....एक रिश्ते को ठोकर मार दी ....अपने इगो के चलते....ये बात नही की मुझे दोस्त से दूर जाने का गम नही है....रिश्ते की टूटन से मुझे भी दर्द है....पर इगो के चलते मैं ये दर्द और गम भी उठाने को तैयार हूँ....तैयार क्या ... उठा ही रहा हूँ.... ।
असल में सभ्य समाज में रहते हुए भी मेरे जैसे कई लोग है जो जीवन को कभी गंभीरता से लेते ही नही...बस अपनी ही धुन में चलते रहते है... और जब कोई इस धुन में रूकावट डालता है तो उसे सहन भी नही कर पते ..... वे इस बात को कभी नही मानते की दोस्त बनाया है तो वो आपकी जिन्दगी में किंतु-परन्तु जरुर करेगा .....और जब वो किंतु-परन्तु करेगा तो धुन में रूकावट जरुर आएगी...ऐसे में अगर इगो जाग जाए तो ......दोस्ती...और रिश्तो में टूटन आएगी ही.... ।
और सच तो यही है की जहा इगो की जगह रहती हैवहाँ कभी कोई रिश्ता बन ही नही सकता....मेरे अन्दर इगो ज्यादा होने के कारण मैंने एक और दोस्त ....एक और रिश्ते को खो दिया है सदा के लिए.... । क्या आप भी मेरे तरह ही हो? यदि हाँ ...... तो समय रहते तुम भी अपने बारे में विचार करो मेरी तरह अपने-आप पर.......वरना...जिन्दगी के खुबसूरत रंग हमसे एक-एक करके दूर होते जायेगे....धीरे...धीरे.... एक खामोशी के साथ....बिना किसी आहत के .... । हमारी झोली में रह जायेगे बस दर्द...शिकायते....और पछतावा.... और हमारा झुटा इगो।

Sunday, 4 January 2009

जिन्दगी

कई बार सोचता हूँ की जिन्दगी में सफलता के निशान क्या है? आख़िर सफल किसको मन जाए?
धनवान होना सफलता है.......
नामवान होना सफलता है.......
...........या फिर नकाबपोस होना सफलता है......
पिछले दो सालो से एक परिवार के सम्पर्क में हूँ....ak ऐसा परिवार, जो धन चाहता है....नाम चाहता है...और इसके लिए अपनी सारी खुशियों को दाव पर लगा रखा है....इन दो सालो में मैंने इस परिवार को करीब से देखा....जाना-पहचाना.....
पाया की इस परिवार ka प्रत्येक सदस्य नाम....धन...के पीछे अपनी जिन्दगी को dav पर लगा कर ख़ुद को ही गुमराह करने में लगा हुआ है...कोई ऐसा दिन नही बीतता जब इसके सदस्यों में तू-तू, मैं-मैं न होती हो......घर मैं लगातार एक हफ्ते तक पिछले दो सालो मैं मुझे प्यार का माहौल देखने नही मिला....
परन्तु घर से बहार इस परिवार को कोई भी ये नही मान सकता की इस परिवार में किसी तरह का तनाव है....असल में घर से बहार इन लोगो ने इतना बड़ा नकाब पहन रखा है की .......आसपडोस के लोग उसे पहचान ही नही पा रहे.....कुछ ऐसे भी लोग है जो इस परिवार को अपना आदर्श मानते है......जब इस बात का जीकर परिवार के लोगो के बीच होता है तो हर कोई इसका कारन अपने -आप को बता कर पुरा पुरुस्कार ख़ुद को ही देने की कोशिश करता है ......और ये बात फिर तनाव का कारण बन जाती है....फिर कई दिनों तक आपस में बोल-चल बंद .....

क्या ये ही जिन्दगी है.......नाम....धन....में ही सारी खुशिया छुपी हुई है.....इस परिवार से मुझे पता चला की जो लोग नाम और धन की चाहत में ही लगे रहते है.....जिन्दगी उनसे का दूर हो जाती है....उनके पास रहता है -एक नकाब।

Thursday, 1 January 2009

नया साल...फिर एक वादा


नया साल आया ....फिर एक वादा अपने-आप से...फिर एक दिलासा ....एक मौका अपनी नाकामियों पर परदा डालने का....

नया साल की पहली सुबह ही कल्पना और सपनो से शुरू होती है....और अंत पिछले साल की गलतियों पर परदा डालने में होता है....पिछले २० सालो से यही सब कुछ करता आ रहा हूँ। और अपने आस-पास भी यही कुछ देखता आ रहा हूँ। हर साल की शुरुआत में कुछ वादे आपने-आप से करता हूँ और साल के दुसरे ही दिन भूल भी जाता हूँ। फिर वो ही .....दुनिया....वो ही...रस्ते...वो ही सब कुछ.......

३१ दिसम्बर की रात को जो-जो सोचा .....वो सब कुछ साफ....मंजिल...सपने...रास्ते...सोच...सब छु-मंतर....

सोचता हूँ की आख़िर ऐसा क्यों करता हूँ?

अपनी बनाई मंजिल...अपने सोचे रस्ते पर.....दो दिन भी क्यों नही कायम रह पता.....

???

शायद मैं अब तक अपने जीवन को लेकर गंम्भीर नही हुआ हूँ।

.....शायद ....

शायद नही ....ये ही सच है। मैं आज तक अपने काम को लेकर गंम्भीर हुआ ही नही हूँ....

और इसी लिए कामयाबी से दूर भी रहा हूँ......

सच्चाई से पीछा छुडाकर अपने ही मैं मस्त रहा ......



पर अब पता चला की मैंने क्या खो दिया इस बीच ....काफी कुछ करने की हिम्मत के बाद भी कुछ NAHI कर सका....सब अपनी कमजोरी के कारण....

..................देखा ...मैं कितनी जल्दी अपनी गलती मान भी लेता हूँ...पर एक बात और......इसी गलती को Hआर साल दोहराता भी रहता हूँ....



और एक बात......ऐसा करने वाला मैं अकेला नही हूँ.....मेरे कई साथी भी है....क्या आप भी ऐसा करते हो?

अगर हाँ ......तो आप भी मेरी तरह कामयाबी से थोड़ा दूर ही रहते हो.....है ना....


चलो...कोई बात नही...नेताओ की तर्ज पर एक बार फिर वादा कर लेते है....वर्षः २००९ के लिए........