
कई बार ऐसी उलझन में मन फंस जाता है की हंसते-खेलते रिश्तो में भी दरार आ जाती है...उस वक्त जीवन के सारे अर्थ अनर्थ में तब्दील हो जाते है और ये रंगीन दुनिया फिर काँटों की सेज लगने लगती है.... ।
मेरे संपर्क में एक ऐसा ही खुशहाल दम्पति था....गरीबी के आँचल में भी दोनों खुश। दोनों के पास दुनिया को अपनी नजर से देखने का एक प्यारा सा सपना भी था....वो थी उनकी ३-४ साल की मासूम और प्यारी सी बेटी। पर गरीब के पास खुशियों का बसेरा कम ही होता है...जालिम समाज गरीब को खुश देख ही नही सकता... ।
समाज के कुछ दरिंदो की नजर इस परिवार पर पड़ी....फिर शुरू हुई एक साजिश.... । इस साजिश का शिकार बना वह गरीब परिवार... । दरिंदो ने पहले दम्पति में से पुरूष को अपना शिकार बनाया... । उसे अपना दोस्त बनाया । उसे शराब पीनी सिखाई । उसे पराई नारी के पास ले जाया गया । फिर उनकी नजर गई उसकी बीबी पर.... । उसे मीठी -मीठी बातो में फुसलाया गया...हँसी-मजाक से सफर शुरू किया... । फ़िर उसे दोस्ती की ऑफर की । वो भयभीत हो गई.. ऐसे में उसने एक सहेली को पुरी बात बताई... । उसकी सहेली ने भी उसे ग़लत दिशा देते हुए दोस्ती करने की सलाह दे दी... बस यही से शुरू हो गया उलझन का रास्ता... । दरिंदा उसे अब अपनी हवाश का शिकार बनाना चाहता था.... । कभी शादी का झांसा देकर .... तो कभी बड़े-बड़े सपने दिखा कर.... । मिया-बीबी में रोजाना तकरार होने लगी... । पति पत्नी पर शक करने लगा.... । परन्तु पत्नी यकीं दिलाती रही....पर कोई फायदा नही....बिना कुछ किए ही वो गुन्हा के घेरे में थी....केवल दोस्ती करने और बात करने की सजा उसे चरित्रहीन के रूप में मिल रही थी....सभी समाज भी मजा ले रहा था.... । बिना कुछ जाने हर कोई उसे ग़लत कह रहा था..... । इसे वो सहन नही कर सकी ....और दो दिन पहले उसने फंसी पर लटक कर जान देने की कोशिश की...उसे बचा तो लिया गया.....पर रिश्तो में आई उलझन यु की त्यों बनी रही..... । शहर को छोड़ दम्पति फ़िर अपने गाँव चला गया ..... उलझन को कम करने के लिए...... ।
और मैं सोचता रहा पुरी रात की आख़िर कसूर किसका था... ??
दरिन्दे का...?
सहेली का.....?
पति का........?
या फिर पत्नी का.....?
फिर लगा इन में से किसी का भी नही..... । कसूर था सोच का...समाज का....najariye का ...
और.......इसकी सजा मिली एक खुशहाल परिवार को.......... ।
फोन्ट ज़रा बड़ा करदें तो पढने वालों को आसानी रहेगी
ReplyDeleteचिट्ठाजगत में आपका स्वागत है......
ReplyDeleteखूब लिखें,अच्छा लिखें........
अच्छा लिखा है। अपना दायरा मनुष्य को खुद तय करना पड़ता है।
ReplyDeleteलिखते रहिए,
धन्यवाद,
Shahar ki nakli khushi ki tulna mein Gaon hi nikalega unhe uljhan se bahar.Swagat.
ReplyDelete(gandhivichar.blogspot.com)
बाबू जी धीरे चलना
ReplyDeleteप्यार में जरा संभालना
बड़े धोखे हैं इस राह में
लेखन जारी रखिये और अपने
मनोभावों को हमारे साथ बांटते रहिये !
मेरी शुभकामनाएं
swaagat hai aapakaa
ReplyDeletedada ek bat puchhun...............ye smaj aakhir hai kya..............kisse hai ye smaj.............jisko aap bar bar dutkarte hai......
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